हरदा – अमीर और गरीबों के बीच की दीवार को ढहा दी युवा अधिकारियों ने:- वरिष्ठ पत्रकार रामविलास कैरवार।
कपिल शर्मा, 9753508589

कपिल शर्मा, हरदा एक्सप्रेस…
पटाखा विस्फोट के दर्द को छू मंतर तो नहीं किया जा सकता लेकिन खाई को पाटने का प्रयास जरूर किया जा सकता है। इस दिशा में युवा अधिकारियो ने शानदार पहल शुरु की है।
उम्र में हरदा के दोनों अधिकारी, कलेक्टर आदित्य सिंह और एसपी अभिनव चौकसे युवा है। कह सकते हैं, तजुर्बे कम रहे होंगे लेकिन समझ ने उनको बहुत योग्य बना दिया है।
एयर कंडीशन रूम को छोड़कर शुद्ध निचली बस्ती के लोगों के बीच पहुंच जाना किसी अजूबे से कम नहीं है। पहली बार आलीशान बंगले से बाहर निकल कर होली का त्यौहार कलेक्टर और एसपी ने मनाया है।
आईएएस और आईपीएस की पदवी को दूर छोड़कर निचली बस्ती के बच्चों के साथ होली का रंग गुलाल उड़ा लेना उनके पद की गरिमा को और महत्वपूर्ण बना देता है।
उन बच्चों के चेहरे की खुशियां देखते बनती है जिनके चेहरे गुलाल लगाते समय पलाश के फूल की तरह, पटाखा विस्फोट की पतझड़ के बावजूद खिल उठे हैं।
बच्चो के खिलखिलाते चेहरे, महिलाओं के शरमाते नयन, बुजुर्गों का आश्चर्यजनक पहलू यह बताता है कि अभी तक उनके बीच में त्योहार मनाने के लिए आईएएस और आईपीएस कभी नहीं आए। सच बात तो यह भी है आईएएस और आईपीएस का पद ही ऐसा है कि वह कभी अपने से निचलों के बीच में जाने की इजाजत नहीं देता, लेकिन जिसने इस दीवार को ढहा दी वाकई में वह जन सेवा के लायक है।
पटाखा विस्फोट से उपजी बर्बादी की कहानी मन को रुला देने वाली है उस पीड़ा को धीरे-धीरे कम किया जा रहा है। आईटीआई में आश्रित परिवार रह रहे हैं उन चेहरों पर हंसी लाने का प्रयास किया किया जा रहा है। होली का त्योहार आया तब उनके बीच में पहुंच कर अपनत्व की भावनाओं को जगाया गया है।
अधिकारी बीती शाम को भी पहुंचे और सोमवार सुबह भी उनके बीच में पहुंचकर मिठाई के साथ-साथ रंग गुलाल की खुशियां बांटी।
वैसे तो शहर एक लाख की आबादी से ऊपर है लेकिन अधिकारियों के अलावा वहां कोई नहीं पहुंचा। विधायक रामकिशोर दोगने पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि मैं फटाका विस्फोट के दर्द के कारण होली का त्यौहार नहीं मनाऊंगा।
प्रेस के लोगो को भी उनके बीच में पहुंचने के लिए आमंत्रण दिया गया था बावजूद नहीं पहुंच पाए। यूपीएससी की तैयारी करते समय यही अवधारणा होती है की गरीब दीन-हीन की सेवा की जाएगी लेकिन पद पर पहुंचने के बाद सारी इबारत बदल जाती है। अभी तक हरदा में यही होता आया है।
प्रत्येक घटना के दो पक्ष होते हैं जब यह खबर में लिख रहा हूं तब पढ़ने वाले ऐसे लोग भी होंगे जो कहेंगे कि अफसरो के पक्ष में लिखा गया है, लेकिन सच में परिदृश्य को देखने के बाद आत्मा से निकलती आवाज ने यह सब कुछ लिखने के लिए मजबूर कर दिया। मुझे इन अफसरो से रत्ती भर भी काम नहीं है लेकिन सच तो सच है उसकी पैरवी करना अनिवार्य है।