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खुद अपनी पहचान बनों, अपने कुल की शान बनों।।

शून्य से शिखर तक का सफर

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खुद अपनी पहचान बनों, अपने कुल की शान बनों।।
स्वंय – स्वंय के भाग्य विधाता , इस जग के तुम निर्माता।।
एक मुधर मुस्कान बनों, अपने कुल की शान बनों।।
पढ़ों लिखों इंसान बनों, अपने कुल की शान बनों।।
उज्जैन

जब – जब स्व. श्री तेजराम परमार की इन लाईनों को दोहराया जाता है मानों जीवन उत्साह और उमंग से भर जाता है, भले ही श्री परमार आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनकी इन अमर लाईनों ने सैकड़ों लोगों के जीवन में बदलाव लाया है। बेटी डॉ. सीमा परमार ने जानकारी देते हुए बताया कि, उज्जैन जिले के छोटे से ग्राम कायथा शासकीय कन्या शाला के पूर्व प्राचार्य रहे स्व. श्री तेजराम जी का जन्म 2 अक्टूबर 1958 में हुआ था। बचपन से ही संघर्ष के बाद उन्होंने समाज और शिक्षा के क्षेत्र में अलग ही पहचान बनाई।

डॉ. सीमा परमार आगे बताती है, कि पिताजी कविता लिखते थे और शिक्षा चेतना और सृजन के कण पुस्तक भी प्रकाशित की हैं। नम आखों से उन्होंने बताया कि पिताजी भले ही आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनका आशीर्वाद और छत्रछाया सदैव हम पर रही है। परिवार में 7 भाई बहन है और सभी शासकीय सेवा में कार्यरत हैं यह सब उनका ही आशीष हैं।

डॉ. परमार बताती है कि कायथा गांव में सैकड़ों लोगों को शिक्षा और रोजगार से जोड़ा है। उनके द्वारा पढाये गये 200 से अधिक बच्चे आज शासकीय सेवा में कार्यरत हैं। उन्हें ग्राम कायथा के लोग अम्बेडकर भी कहते थे। आज उनकी स्मृति शेष पर श्रद्धासुमन अर्पित कर रहे हैं।

शून्य से शिखर तक का सफर

जीवन के पड़ाव में उतार चढ़ाव चलते रहे है लेकिन पिताजी कहते थे, कि “आशा मेहनत गुरुजन सेवा, श्रद्धा भक्ति से ले लेा मेवा” इसी लाइन ने उन्हें शून्य से शिखर तक का सफर तय कराया हैं। नंवबर 2017 में श्रीहरि के चरणों में विलीन हो गये और हमारे बीच उनकी सिर्फ यादे शेष गई है किंतु आज उनकी मेहनत का प्रतिफल जो आशीर्वाद मिला है उससे पूरा परिवार सदैव ऋणी है।


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